मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य के निजी स्कूलों की मनमानी फीस वसूली के मसले पर जनहित याचिका में संशोधन की मांग मंजूर कर ली। इसके तहत ऑनलाइन पढ़ाई का बिंदु भी फीस वाले मामले के साथ शामिल करके सुना जाएगा। जनहित याचिकाकर्ता ने संशोधन आवेदन के जरिए राज्य शासन द्वारा निजी स्कूलों को ऑनलाइन पढ़ाई की अनुमति दिए जाने का विरोध किया है। मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश अजय कुमार मित्तल व जस्टिस विजय कुमार शुक्ला की युगलपीठ ने सोमवार को सभी पक्षकारों को आगामी सुनवाई तक अपने जवाब पेश करने के निर्देश दिए हैं।
कोर्ट ने वह अंतरिम आदेश भी बराकरार रखा है,
जिसके जरिए कोरोना काल में फीस जमा न करने पर संबंधित छात्र-छात्रा का नाम काटने पर रोक लगा दी गई थी। यही नहीं राज्य शासन के आदेशानुसार सिर्फ ट्यूशन फीस वसूली की व्यवस्था भी यथावत रखी गई है। अगली सुनवाई एक सितंबर को होगी। निजी स्कूलों की फीस की मनमानी को लेकर नागरिक उपभोक्ता मार्गदर्शक मंच के प्रांताध्यक्ष डॉ. पीजी नाजपाण्डे व रजत भार्गव की ओर से दायर जनहित याचिका में यह मुद्दा उठाया गया कि इंदौर हाईकोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट की एकलपीठों ने निजी स्कूलों द्वारा फीस वसूली को लेकर दो अलग-अलग आदेश दिए हैं।
भारी भरकम फीस से लुटे अभिभावक
इसके चलते विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न हो गई है। कई निजी स्कूल मनमानी फीस वसूल रहे हैं, जबकि कुछ सरकार के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। अधिवक्ता दिनेश उपाध्याय ने दलील दी कि प्रदेश भर में निजी स्कूल ऑनलाइन कोचिंग के माध्यम से पढ़ाई संचालित कर रहे हैं, लेकिन भारी भरकम ट्यूशन फीस का स्ट्रक्चर तैयार कर अभिभावकों को लूटा जा रहा है।
ऑनलाइन पढ़ाई से स्वास्थ्य का खतरा बढ़ा
याचिकाकर्ता की ओर से पेश संशोधन आवेदन मंजूर किया गया। इस आवेदन के जरिए राज्य सरकार की ओर से निजी स्कूलों को ऑनलाइन क्लासेस संचालित करने की अनुमति को चुनौती दी गई। अधिवक्ता उपाध्याय ने तर्क दिया कि ऑनलाइन क्लासेस से छात्र-छात्राओं की सेहत पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। आंखों और दिमाग पर अतिरिक्त जोर पड़ने से बीमारियों का खतरा बढ़ गया है। अधिवक्ता अमित सिंह की ओर से अधिवक्ता अतुल जैन ने भी तर्क दिया कि निजी स्कूलों को मान्यता भौतिक कक्षाएं संचालित करने की मिली है, ऑनलाइन क्लासेस का संचालन गलत है। संशोधन स्वीकार कर सभी पक्षों की सहमति से कोर्ट ने सुनवाई बढ़ा दी।
मान्यता कमर्शियल यूज के लिए नहीं : सीबीएसई
हाई कोर्ट के पूर्व निर्देश के पालन में सीबीएसई की ओर से अपना जवाब पेश किया गया। जिसमें राज्य शासन के सिर्फ ट्यूशन फीस वसूली के आदेश को उचित ठहराया गया। साथ ही साफ किया गया कि निजी स्कूलों को मान्यता कमर्शियल यूज के लिए नहीं दी गई है। लिहाजा, मनमानी फीस वसूली ठीक बात नहीं है।