गुजरात को कोरोना वायरस के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी प्रणाली के इस्तेमाल की अनुमति मिल गई है. हम जानेंगे क्या है प्लाज्मा थेरेपी what is plasma therapy plasma therapy इसकी इजाजत मिलने के बाद कोरोना वायरस के संक्रमण से कैसे ठीक हुईं स्मृति ठक्कर . कैसे काम कर रही है plasma therapy .आइये जानते है
कौन है स्मृति ठक्कर | what is plasma therapy
अहमदाबाद । कोरोना वायरस को मात दे चुकीं स्मृति ठक्कर कोरोना वॉरियर बन गई हैं। स्मृति ने अपना प्लॉज्मा (जीवाणु) डोनेट किया है। ऐसा करने वाली वह गुजरात की पहली शख्स हैं। वह कोरोना से तब पीड़ित हुईं, जब यूरोप की यात्रा से लौटी थीं। हालांकि, अहमदाबाद के हॉस्पिटल में भर्ती होने के 17 दिनों के भीतर ही वह कोरोना से मुक्त हो गईं। उन्होंने अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में रक्तदान किया है, जिसका इस्तेमाल अब कोरोना के मरीज के इलाज में किया जाएगा.

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डॉक्टरों का कहना है कि, अब उनके ब्लड से प्लॉज्मा अलग कर कोरोना पीड़ित मरीजों को चढ़ाया जाएगा, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी। डॉक्टरों की ही मदद से गुजरात सरकार ने इस तरह का प्रयोग शुरू किया है। एक डॉक्टर ने बताया कि, किसी खतरनाक रोग से स्वस्थ हुए मरीज के शरीर के एंटीबॉडीज के जरिए गंभीर मरीज का इलाज करना आसान हो जाता है। ऐसे में हम भी अब स्मृति के प्लॉज्मा को कोरोना से संक्रमित अन्य गंभीर मरीजों के उपचार के लिए इस्तेमाल करेंगे।
स्मृति ठक्कर ने प्लाज्मा थेरेपी के लिए अपना प्लाज्मा डोनेट ( first plasma donor ) किया. कोरोना वायरस के मामले बढ़ने के साथ ही इसके इलाज के तरीके भी खोजे जा रहे हैं. ऐसा ही एक तरीका है प्लाज्मा ट्रीटमेंट. इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी ICMR इसे हरी झंडी दिखा चुका है. इसके बाद गुजरात ने प्लाज्मा ट्रीटमेंट के लिए ट्रायल शुरू किया है. अहमदाबाद के सरदार पटेल अस्पताल में इस पर काम हो रहा है. अस्पताल को प्लाज्मा डोनर भी मिल चुका है.
स्मृति ठक्कर मार्च में बीमार हुई थीं
24 साल की स्मृति 19 मार्च को पेरिस से आई थीं. इसके बाद वह कोरोना पॉजीटिव पाई गईं. उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया. कोरोना से ठीक होने के बाद 6 अप्रैल को स्मृति अस्पताल से डिस्चार्ज हुई थीं. उन्होंने बताया कि अस्पताल ने उनसे प्लाज़्मा के लिए सहमति मांगी थी. माता-पिता से बात करने के बाद मैंने हां कर दी.
इसके बाद प्लाज़्मा थेरेपी के बारे में अहमदाबाद के म्युनिसिपल कमिश्नर विजय नेहरा ने जानकारी दी. उन्होंने ट्वीट किया – सीएम विजय रुपाणी का मदद के लिए शुक्रिया. ICMR से हमें सरदार वल्लभ भाई पटेल अस्पताल में प्लाज़्मा थेरेपी शुरू करने की अनुमति मिल गई है.
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प्लाज़्मा देने वाली स्मृति ने भी ट्वीट कर जवाब दिया. उन्होंने लिखा –
कोरोना वायरस से ठीक होने में मदद करने और इलाज के लिए गुजरात के सीएम, विजय नेहरा और नरेंद्र मोदी को धन्यवाद. मुझे उम्मीद है कि प्लाज़्मा थेरेपी से हम सभी की जान बचा पाएंगे. मैं सभी मरीजों से प्लाज़्मा डोनेट करने की अपील करती हूं. इससे गंभीर रूप से बीमार मरीजों की जान बचाई जा सकती है.
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क्या है प्लाज्मा थेरेपी | what is plasma therapy in hindi
what is plasma therapy :- जब किसी आदमी को इंफ़ेक्शन होता है, तो उसके शरीर में इंफ़ेक्शन फैलाने वाले वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ़ एंटीबॉडी बनने लगती है. ये एंटीबॉडी उस इंफ़ेक्शन से लड़ती हैं. और शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि कोरोनावायरस से संक्रमित जो लोग ठीक हो रहे हैं. उनके शरीर के प्लाज़्मा (खून का एक जरूरी हिस्सा) में कोरोनावायरस के खिलाफ़ एंटीबॉडी बन रही है. जो कोरोना संक्रमण से बरी हो चुके हैं, वे प्लाज़्मा डोनेट कर सकते हैं.
plasma therapy corona virus के इलाज मै है आशा की किरन
डॉक्टरों का कहना है कि कोरोना मुक्त व्यक्ति के प्लाज़्मा से संक्रमित व्यक्ति की रोग से लड़ने की ताकत बढ़ सकती है. इसके लिए प्लाज़्मा को कोरोनावायरस से संक्रमित व्यक्ति को ट्रांसफर किया जाएगा. उम्मीद है कि ट्रांसफर के बाद ये प्लाज़्मा उनके शरीर में वायरस से लड़ेगा. उन्हें रोगमुक्त करेगा.
एक व्यक्ति से मिले प्लाज़्मा से कम से कम 2 और अधिक से अधिक 5 लोगों का इलाज किया जा सकता है. एक व्यक्ति के इलाज में 200-250 ml प्लाज़्मा लग सकता है. उम्मीद की जा रही है कि ऐसे केसों में तेज़ी से व्यक्ति रिकवर कर सकता है. कुछ शोध दावा करते हैं कि 3 से 7 दिनों के भीतर संक्रमित व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है. हालांकि अभी यह रिसर्च के स्तर पर ही है. यानी यह तय नहीं हो पाया है कि प्लाज़्मा थेरेपी से पूरी तरह कोरोना का इलाज हो सकता है.
पहले भी कई बीमारियों में हुआ इस्तेमाल
यह प्लाज्मा थेरेपी प्रणाली कोई नई प्रणाली नहीं है. इससे पहले भी डिप्थीरिया, सार्स, मर्स जैसी महामारियों में इस प्रणाली का उपयोग किया जा चुका है. इसमें काफी सफलता भी मिली है. वर्तमान में विश्व के कई देश कोरोना वायरस से लड़ने के लिए इस प्रणाली का उपयोग कर रहे हैं.